एक तरफ अधूरा इश्क़



एक तरफा अधूरा इश्क 


एक तरफ़ा अधूरा इश्क , मर्यादा मुक्त 

अपेक्छा कुछ नहीं पर चाहत हर चीज  

दो पलकें झुका कर सपनों मे साजन को साथ बुनता 

और सपनों की बुनी चादर को ओढ़ कर सो जाता 


कल्पनाओं में कभी रूठता तो कभी मनाता 

कल्पनाओं की खुशी चेहरे पर आते ही खुद शर्म से चेहरा लाल हो जाता 

ऐसा है एक तरफ़ा अधूरा इश्क 


एक पूरी जिंदगी साथ बिताने के लिए दुआएं मांगता 

दीदार करता,शादी करता, अपना एक परिवार बसता 


पर डरता है इज़हार से 

सपनों के टूटने से 

कह देता बातें सारी कहानियों मे 

पर हकीकत में नज़रे भी नहीं मिला पता 


और अंत मे खो देता है अपनी चाहत को 

किसी और का होता देख 

कभी समय को दोष देकर,

तो कुछ काश मे कुछ आस में 

इस तरह ढल गया मेरे प्रेम का सूरज भी 

निकल गया हाथों से एक तरफ़ा इश्क 

अधूरा इश्क


Post a Comment

0 Comments